बारिश के समय छत पर जाना कितना अच्छा लगता है, बहुत अच्छी ठंडी हवा, लहलहाते पेड़-पौधे और आजाद पंछियों को आसमान में उड़ता हुआ या एक डाली से दूसरी डाली पर बैठते हुए देखना, कहीं पूरी तरह खिले और मुस्कुराते हुए फूल...पूरी प्रकृति खुश नजर आती है. और अगर ऐसे में आप किसी प्राकृतिक जगह पर होते हैं तो फिर तो क्या कहने, चारों ओर, ऊपर नीचे, सब जगह चाहे जितना देखो, मन ही नहीं भरता...
भगवान ने बहुत सुंदर बनाकर दी थी ये धरती इंसानों को, और आज देखो कि यमुना जी के मुख से जहरीला झाग निकल रहा है... इतना जहर दिया है इंसानों ने जीवनदायनी नदियों को...
मेरे घर के सामने जो फैमिली रहती है, उन्होंने अपने घर में पक्षियों के दो पिंजरे रखे हुए थे. दोनों में एक-एक तोता रहता था. वे दोनों शुरू में तो बड़े चिल्लाते रहते थे, लेकिन बाद में बड़े उदास से बैठे रहते थे, न चिल्लाते थे, न खेलते थे...
अगर इसी तरह इंसानों को भी किसी जेल में ठूंसकर भर दिया जाए तो??
क्या पिंजरे में बैठा हुआ पक्षी जब अपने सामने दूसरे पक्षियों को उड़ता हुआ देखता होगा, तब उसे बहुत दर्द नहीं होता होगा कि अगर वह भी आजाद होता तो अपने दोस्तों के साथ, अपनी फैमिली के साथ आसमान में कहीं भी उड़ता, किसी भी पेड़ पर बैठता... भगवान ने उन्हें पंख भी दिए हैं तो पिंजरे में बंद पंछी के पंख उड़ने के लिए फड़फड़ाते नहीं रहते होंगे क्या??
पता नहीं कि लोग मछलियों को पकड़कर कैसे खा जाते हैं... जो रईस लोग केवल और केवल अपने शौक या स्वाद के लिए मछलियों का शिकार करते हैं और उन्हें खाते हैं, उन्हें ये देखकर दया क्यों नहीं आती कि एक-एक मछली कितनी तड़प-तड़प कर मरती है... वह पानी और सांस लेने के लिए तरस-तरस कर दम तोड़ देती है... आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि ये देखकर किसी को भी दया न आए...
पक्षियों के बच्चे अंडों से निकलकर बाहर की दुनिया देखकर बस खुश ही हो रहे होते हैं, उनके माता-पिता अपने बच्चों का मुख देखकर मुस्कुरा ही पाते हैं कि एक बड़ा सा छुरा आकर उन्हें बेरहमी से काटकर चला जाता है...
जो लोग धार्मिक क्रियाओं के नाम पर बेजुबान जानवरों की बड़ी निर्दयता से बलि दे देते हैं, जरा देखकर बताओ कि इसके मन से कौन सी दुआ या पॉजिटिव एनर्जी निकल रही होगी...
मैंने सुना है कि डेयरी उद्योगों में अगर गाय का बछड़ा पैदा होता है तो अगर वह मादा होती है तो फिर तो उसे भी आगे दूध देने के लिए रख लिया जाता है और अगर वह नर होता है तो उसे बेरहमी से मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, या उसे बूचड़खाने में बेच दिया जाता है...वहीं जब गाय भी दूध देने लायक नहीं रहती तो उसे भी बड़ी बेरहमी से ट्रकों में भरकर बूचड़खाने में बेच दिया जाता है...
दूध पिलाने वाली, मां समान ही होती है, फिर चाहे वह जानवर ही क्यों न हो... जब मां बूढ़ी हो जाए, वो किसी काम की न रह जाए, तो क्या उसे कसाइयों के बीच कटने के लिए डाल देना चाहिए? जिसके जरिए हमेशा मोटी कमाई की हो, स्वास्थ्य लाभ भी लिया हो, जब वो काम करने लायक न रह जाए और उसे जब सबसे ज्यादा सहारे की जरूरत हो, तब उसे कटने के लिए बेच दिया जाना चाहिए??
मुझे नहीं लगता कि इन सभी डेयरी उद्योगों को हमेशा काम आने वाली गायों को अंत तक पाल सकने की औकात नहीं होगी... लेकिन ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में इंसानियत का पूरी तरह त्याग कर दिया इंसान ने...
क्या भगवान केवल इंसानों के हैं? उन्होंने तो जानवरों को भी बनाया है, पक्षियों को भी बनाया है... क्या इनकी तड़प उन्हें नहीं दिखती होगी?
जितने भी जानवरों की अपने स्वार्थ के लिए बेरहमी से हत्या कर दी जाती है, क्या उनके दिल से शाप नहीं निकलता होगा??
कोरोना महामारी की वजह से हम सब भगवान को निर्दयी भी कह रहे हैं, लेकिन जब इंसान भगवान की अन्य संतानों के साथ इतनी क्रूरता करता है तो क्या भगवान भी इंसानों को निर्दयी कहकर कोसते नहीं होंगे????
आज इंसान पूछ रहा है कि इतनी त्रासदी देखकर भी भगवान को दया कैसे नहीं आ रही, तो यही सवाल क्या भगवान भी नहीं पूछते होंगे, जब...
अंतर इतना है कि भगवान् के पास सजा देने की भी शक्ति है, लेकिन हम उस शक्ति से नहीं उलझ सकते... और फिर गेहूं के साथ घुन तो पिसता ही है..
अपना खाने की थाली को बेजुबानों की चीख से मुक्त रखें, किसी की लाश को अपने घर लेकर न आएं... और न ही अपने निर्दोष जीवों की हत्या करें, दया करना सीखें, फिर देखना- आप भगवान से जो भी मांगेंगे, आपको जरूर मिलेगा..
अच्छे लगते हैं-
आजादी से..
उड़ते पंछी
विचरण करते जीव
बहता पानी
खिलते फूल
मंडराती तितलियां
उगता सूर्य
खुला साफ आसमान
लहराते खेत
शान से खड़े वृक्ष और पर्वत
हरे-भरे मैदान...
Please जियो और जीने दो
Please Love Nature
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