ऋषि मार्कंडेय ने पूछा जभी
दया करके ब्रह्माजी बोले तभी
कि जो गुप्त मंत्र है संसार में
हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में
हर इक का कर सकता जो उपकार है
जिसे जपने से बेड़ा ही पार है
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का
जो हर काम पूरा करे सवाली का
सुनो मार्कंडेय मैं समझाता हूँ
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ
कवच की मैं सुंदर चोपाई बना
जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता
पढ़े जो मन चित लाये
उस पे किसी प्रकार का
कभी कष्ट न आये
कहो जय जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की- 2
पहली शैलपुत्री कहलावे
दूसरी ब्रह्मचारिणी मन भावे
तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम
चौथी कूष्माण्डा सुखधाम
पांचवी देवी स्कंद माता
छठी कात्यायनी विख्याता
सातवीं कालरात्रि महामाया
आठवीं महागौरी जग जाया
नौवीं सिद्धिदात्री जग जाने
नव दुर्गा के नाम बखाने
महासंकट में बन में रण में
रोग कोई उपजे निज तन में
महाविपत्ति में व्योवहार में
मान चाहे जो राज दरबार में
शक्ति कवच को सुने सुनाये
मन कामना सिद्धि नर पाये
चामुंडा हैं प्रेत पर
वैष्णवी गरुड़ सवार
बैल चढ़ी माहेश्वरी
हाथ लिये हथियार
कहो जय जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की-2
हंस सवारी वाराही की
मोर चढ़ी दुर्गा कौमारी
लक्ष्मी देवी कमल असीना
ब्रह्मी हंस चढ़ी ले वीणा
ईश्वरी सदा बैल सवारी
भक्तन की करती रखवारी
शंख चक्र शक्ति त्रिशूला
हल मूसल कर कमल के फूला
दैत्य नाश करने के कारन
रूप अनेक कीन्ह हैं धारण
बार-बार मैं सीस नवाऊं
जगदम्बे के गुण को गाऊँ
कष्ट निवारण बलशाली माँ
दुष्ट संहारण महाकाली माँ
कोटि कोटि माता प्रणाम
पूरण की जो मेरे काम
दया करो बलशालिनी
दास के कष्ट मिटाओ
चमन की रक्षा को सदा
सिंह चढ़ी माँ आओ
कहो जय जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की-2
अग्नि से अग्नि देवता, पूरब दिशा में ऐन्द्री
दक्षिण में वाराही मेरी, नैर्ऋत्य में खड्गधारिणी
वायु से माँ मृग वाहिनी, पश्चिम में देवी वारुणी
उत्तर में माँ कौमारी जी, ईशान में शूल धारिणी
ब्रह्माणी माता अर्श पर, माँ वैष्णवी इस फर्श पर
चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो
सन्मुख मेरे देवी जया, पाछे हो माता विजैया
अजिता खड़ी बायें मेरे, अपराजिता दायें मेरे
उद्योतिनी माँ शिखा की, माँ उमा देवी सिर की ही
मालाधरी ललाट की, और भ्रुकुटी की यशर्वथिनी
भ्रुकुटी के मध्य त्रिनेत्रा यम् घंटा दोनों नासिका
काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो
ऊपर व नीचे होठों की, माँ चर्चिका अमृत करी
जिह्वा की माता सरस्वती, दांतों की कौमारी सती
इस कंठ की माँ चण्डिका, और चित्रघंटा घंटी की
कामाक्षी माँ ठोढ़ी की, सर्वमँगला इस वाणी की
ग्रीवा की भद्रकाली माँ, रक्षा करे बलशाली माँ
दोनों भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारनी
दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे वज्रधारिणी
शूलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशिनी
जंघा स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जग वासिनी
हृदय उदर और इस नाभि की, कटि भाग के सब अंग की
गुह्येश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की
घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी
टकखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासनी
रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर
आँतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर
बल बुद्धि अंहकार और, प्राण अपान समान
सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान
धार अनेकों रूप ही, रक्षा करियो आन
तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण
आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार
ब्रह्माणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार
विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल
दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल
भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश
मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश
यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाय
हे जग जननी कर दया, इतना दो वरदान
लिखा तुम्हारा कवच यह, पढ़े जो निश्चय मान
मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाये
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर में आये
ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंडेय
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा
जगत की भलाई को मैंने बताया
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया
चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया
जो संसार में अपने मंगल को चाहे
तो हरदम कवच यही गाता चला जा
बियाबान जंगल दिशाओं दसों में
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा
तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे
चमन कदम आगे बढ़ता चला जा
तेरा मान धन धान्य इससे बढ़ेगा
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाये
यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा
यही तेरे सिर से हर संकट हटायें
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये
इसे नित्य प्रति चमन श्रद्धा से पढ़ कर
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाये
इस स्तुति के पाठ से पहले कवच जो पढ़े
कृपा से आदि भवानी की, बल और बुद्धि बढ़े
श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम
सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम
कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादान
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण ||
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