8 साल पहले की बात है, जब मैं इंटरमीडिएट में रोज शाम को कोचिंग जाती थी. जिस जगह पर जाती थी, वह जगह कुछ सुनसान सी रहती थी. गली में एक पुलिस वाला रोज खड़ा हुआ मिलता था, लेकिन लौटते समय नहीं. उसकी नजरें ठीक तो नहीं लगती थी, लेकिन मैंने उस बात को इग्नोर किया और कोचिंग जाना जारी रखा. उस समय UP में सपा की सरकार थी...
एक बार की बात है, जब मैं वहीं से निकल रही थी. तब उस पुलिस वाले ने मुझे बुलाया, तो मैं उसके पास चली गई. फिर उसने मेरा नाम पूछा, तो मैंने बता दिया. फिर उसने यह भी पूछा कि मैं कहां जाती हूं, कौन सी क्लास में पढ़ती हूं... तो मैंने वो सब भी बता दिया. फिर उसने मुझे एक टॉफी दी, जिसे लेने से मैंने मना कर दिया और अपने रास्ते चली गई...
दूसरे दिन जब फिर मैं वहां से निकल रही थी, तब उसी पुलिस वाले ने मुझे फिर बुलाया. उसने कहा कि "मेरा घर यहीं है, चलो. आज घर में पूजा है तो प्रसाद दे दूं."
मैंने मना कर दिया और कहा कि मुझे कोचिंग के लिए देर हो रही है. फिर वो हाथ पकड़कर जिद सा करने लगा, तो मैंने उसकी किसी भी बात का जवाब नहीं दिया और दौड़ते हुए वहां से चली गई... बस, मन में श्रीराम की छवि और उनका ध्यान हमेशा रहता है.
उस दिन मुझे उसके एक्सप्रेशन बिल्कुल ठीक नहीं लगे थे. वो बातें तो पूजा की कर रहा था, लेकिन एक्सप्रेशन कुछ और ही थे, जो मैं यहां नहीं बता सकती.
मेरा उस दिन कोचिंग में पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लगा, मैं बहुत ज्यादा टेंशन में आ गई थी.
घर पर आकर मैंने सोचा कि सबको कल और आज वाली बात बता देनी चाहिए, लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई. मैंने सोचा कि सब लोग डाटेंगे कि 'उसने बुलाया और तुम क्यों उसके पास बात करने के लिए चली गईं...'
तो मैंने किसी को बताया नहीं, लेकिन अकेले में बैठकर बहुत रोईं...
रात को भी मुझे नींद नहीं आ रही थी. तब आधी रात को मैं अपने घर के मंदिर में गई और रोते-रोते भगवान जी को ही अपनी पूरी बात बता दी. मैं काफी देर तक मंदिर में बैठी रहीं..
फिर भी मैं डर के कारण तीन दिन तक कोचिंग नहीं गईं. डर के कारण मेरी तबियत कुछ खराब भी हो गई थी, तो घरवालों ने भी नहीं जाने दिया..
फिर चौथे दिन मैं हिम्मत करके कोचिंग गई, लेकिन उस दिन मुझे वह पुलिस वाला वहां दिखाई नहीं दिया,
मैंने राहत की सांस ली और कोचिंग पढ़कर आ गईं..
उसके बाद मुझे वह पुलिस वाला दिखाई ही नहीं दिया. अब मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि मुझे डरना चाहिए या खुश होना चाहिए. मैंने सोचा कि "अचानक ये कहां गायब हो गया.. कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी और रास्ते पर वह मुझ पर नजर रख रहा हो.."
फिर मैंने एक हफ्ते बाद यह पूरी बात अपनी दीदी को बता दी. दीदी ने मम्मी को बताई और मम्मी ने पापा को बता दी. पापा को सुनकर बहुत गुस्सा आया. उन्होंने कहा कि 'तुमने हम लोगों को पहले क्यों नहीं बताया...'
उसके बाद वाले दिन पापा मुझे कोचिंग छोड़ने गए, साथ ही गली में कुछ लोगों से उस पुलिस वाले के बारे में पूछताछ भी की...
तो पता चला कि उस पुलिस वाले से अपनी ड्यूटी के दौरान एक बहुत बड़ी लापरवाही हो गई थी, जिस वजह से उसे यह शहर छोड़कर अपने गांव जाना पड़ा. उसके खिलाफ शायद कोई केस भी फाइल हो गया था.
ये भी पता चला कि वो पुलिस वाला एक मुस्लिम था (जो पूजा-प्रसाद का नाम लेकर मुझे अपने घर चलने के लिए कह रहा था). अब असल में उस पुलिस वाले के साथ कब क्या हुआ था, ये तो मुझे ठीक से नहीं पता, लेकिन फिलहाल वो मेरा शहर छोड़कर जा चुका था..
जब पापा ने घर पर यह बात बताई, तो घर में सब लोग इतने खुश हुए और मैंने सबसे पहले जाकर भगवान जी को धन्यवाद दिया..
भगवान जी से शिकायत करने के बाद उस पुलिस वाले से अपनी ड्यूटी में लापरवाही होना और फिर उसका उस जगह से चले जाना... आदि को आप लोग मात्र एक संयोग मान सकते हैं, लेकिन मैं इसे संयोग नहीं मानती...
मैं इसे अपने लिए भगवान जी की कृपा ही मानती हूं, क्योंकि मेरे साथ कई और भी संयोग हुए हैं...
वैसे यह बात मुझे सोशल मीडिया पर बतानी तो नहीं चाहिए थी, मैं हिम्मत भी नहीं कर पा रही थी, लेकिन जब आए दिन लोगों को भगवान जी का इतना अपमान करते हुए देखती हूं, तब मुझे बहुत बुरा लगता है. मुझे लगा कि यह बात बतानी चाहिए...
बाकी दुनिया में जो कुछ होता है, क्यों होता है यह तो मुझे नहीं पता, लेकिन इतना जरूर पता है कि भगवान जी से अलग होकर इंसान नहीं जी सकता..
मैंने अपनी अब तक की लाइफ में बहुत बुरे-बुरे दिन भी देखे हैं, गरीबी भी देखी है, और भी बहुत कुछ देखा है... हालांकि भगवान जी की कृपा से अब मेरे घर में सबकुछ ठीक है...
मुझे जब भी भगवान जी से अपनी कोई बात कहनी होती है, या जैसे ही कोई भी मुसीबत आती है, तब मुझे सबसे पहले अपने श्रीराम जी का ही नाम याद आता है... पता नहीं क्यों, मैं झूठ नहीं बोल रही, लेकिन श्रीराम जी ही हैं, जिनसे अपनी कोई भी बात शेयर करने में मुझे कभी कोई संकोच नहीं होता, वो मेरे हैं.. I Love Him
मेरे मम्मी पापा ने तो मुझे हमेशा यही सिखाया है कि भगवान जी पर विश्वास तोड़ना बहुत आसान है, लेकिन विश्वास बनाए रखना बहुत ज्यादा कठिन है... अपनी विश्वास की डोर भगवान जी से बिल्कुल नहीं टूटने देनी चाहिए, क्योंकि इससे हम उनसे दूर होते चले जाते हैं...
इस दुनिया में इंसान के साथ कुछ भी निश्चित नहीं है, कभी कोई भी घटना घट जाती है. मानव जीवन है तो सुख-दुख तो आते ही रहेंगे. ऐसे में खुद को भगवान जी की शरण में रखकर अपने सारे काम करने चाहिए और यही बात भगवत गीता और रामचरितमानस में भी सिखाई गई है, जैसे हनुमान जी और अर्जुन भगवान जी के साथ रहकर अपने सारे धर्म-कर्तव्य निभाते चले जाते हैं...
अगर कभी हम किसी ऐसे संकट में फंस जाएं, जहां किसी भी प्रकार की धन-दौलत या कोई भी इंसान हमें बचाने न आ सके, तब हमारी भक्ति ही तो हमारे काम आएगी..
दो पत्थरों में अग्नि को प्रकट करने का गुण है, जो दिखाई नहीं देता... इसी को ब्रह्म या ईश्वर कहते हैं, जो होते हुए भी दिखाई नहीं देता. उसे प्रकट करने के लिए हमें "अभ्यास" करना पड़ता है, ताकि जरूरत पड़ने पर हम उन पत्थरों से "अग्नि" को प्रकट कर सकें. इसी अभ्यास को भक्ति कहते हैं...
रामचरितमानस में लिखा है कि सीता जी ने लंका में अपने चारों तरफ राम नाम का घेरा बना रखा था, यानी इतना ज्यादा ध्यान करती रहती थीं वो श्रीराम का..
ऐसे ही हर व्यक्ति को श्रीराम जी की सुरक्षा हमेशा अपने साथ रखनी चाहिए..
कोई भी काम करने से पहले, घर से बाहर निकलने से पहले श्रीराम का ध्यान जरूर करना चाहिए, हनुमान जी की तरह..
मुझे तो किसी से भी यह पूछने की जरूरत ही नहीं कि 'भगवान होते हैं या नहीं', क्योंकि मैंने भगवान जी को महसूस किया है, हर पल महसूस किया है. मैंने अपने श्रीराम को महसूस किया है (शायद एक बार देखा भी है)...
साभार : सोशल मीडिया (एक सच्ची घटना पर आधारित)
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