और आज फिर उन्हीं जाहिल जॉम्बीज ने फ्रांस के मार्शिले शहर में सबसे बड़ी पब्लिक लाइब्रेरी जलाकर राख कर दी जिन्होंने महज कुछ सौ वर्ष पहले भारत में तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला आदि समृद्ध विश्वविद्यालयों के साथ साथ इनके अति दुर्लभ ग्रंथों से सुसज्जित व कठिन परिश्रम से बनाए गए पुस्तकालयों को जलाकर राख कर दिया था।
सोचिये तो, वे ऐसा क्यों कर रहे थे? किताबें किसी को क्या नुकसान पहुँचा सकती हैं? दरअसल हर अज्ञानी चाहता है कि संसार उसी की भांति हो जाय। वह ज्ञान को पनपने ही नहीं देना चाहता, बल्कि ज्ञान के हर मन्दिर को तोड़ देना चाहता है, फूंक देना चाहता है।
उनकी कोशिश बाणभट्ट, तुलसीदास अरस्तू, सुकरात, दांते, वॉल्टेयर , टॉलस्टॉय शेक्सपियर को मिटा देने की नहीं है। उनकी कोशिश 'सभ्यता' शब्द को मिटा देने की है क्योंकि वे असभ्य हैं। उनके प्रयास ज्ञान की प्रत्येक संभावना को नष्ट कर देने के हैं क्योंकि वे अज्ञानी बने रहने के लिए शापित हैं।
वे संसार में मानवता के उस प्रत्येक चिन्ह को मिटा देने की, जलाकर राख कर देने की कोशिश करते हैं जो कलात्मक हो, सांस्कृतिक हो, शिष्ट हो, व्यवस्थित हो और जो उनकी जाहिलियत से मेल ना खाता हो।
वे विष्णु पुराण के श्लोक 'सा विद्या या विमुक्तये' से भयभीत हैं क्योंकि वे अपने अज्ञान की अभिशप्तता को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। सदियों के अंधेरे में घिरा हुआ निस्सार विश्वास ज्ञान की किरण से चोटिल हो जाता है। उनकी निराशा का पारावार नहीं है क्योंकि संसार भर के विशाल पुस्तकालयों में प्रत्येक भाषा की पुस्तकें उनकी वहशी सोच को नकारती हुई मालूम हो रही हैं।
वे दिनरात जनसंख्या बढ़ाने के बावजूद किसी छोटी सी मढ़िया में रखे जर्जर भोजपत्र पर रक्तचंदन से लिखे हुए शब्दों से कांप उठते हैं जो उनके अधर्मपूर्ण जीवन का भविष्य बताते हुए कह रहा है।
"इक लख पूत सवा लख नाती,
ता रावण घर दिया ना बाती"
वे सदियों से पुस्तकालयों को जला रहे हैं क्योंकि वे पुस्तकालयों में रखी पुस्तकों में लिखे शब्दों की सत्यता से भयभीत हैं। क्योंकि वे जानते हैं 'शब्द ही ब्रह्मा हैं'।
बहुत लोग बार बार कहते हैं कि भारतीय बहुत ही वीर थे, पराक्रमी थे, सक्षम थे तो पराजित क्यों हो जाते थे? उनके मन्दिर क्यों टूट जाते थे, उनके विद्यालय क्यों जला दिए जाते थे? अब यही प्रश्न फ्रांस से पूछिए! वह आज के समय के सबसे शक्तिशाली देशों में से है। सबसे सम्पन्न, सभ्य, ताकतवर... फिर चार दिन पहले गिड़गिड़ा कर शरण मांगते घुसे कुछ लोग पूरे देश को परेशान कैसे कर रहे हैं? स्कूल कैसे तोड़ रहे हैं, पुस्तकालय कैसे फूंक रहे हैं?
साभार : Wafah Faraaz
0 टिप्पणियाँ